Saturday, July 26, 2008

meri pasand.....chalo ek baar phir se ajnabi ban jaayein hum dono


meri pasand.........
Sahir Ludhiyanvi

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
ना तुम मेरी तरफ देखो गलत अन्दाज़ नज़रों से
ना मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों में
ना ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

तुम्हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाईयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

तारूफ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
तालुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अन्जाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनो

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